प्रदेश भर से आए हज़ारों किसानों और बागवानों ने किया विधानसभा मार्च
अपने मंत्रियों के साथ किसानों से ज्ञापन लेने रैली स्थल पर पहुंचे मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू
28 अप्रैल को उपमण्डल, खण्ड, तहसील स्तर पर किसान प्रदर्शन करेंगे
रिपब्लिक भारत न्यूज़ 20-03-2025
भूमि नियमितिकरण और अन्य मांगों को लेकर प्रदेश भर से आए किसानों और बागवानों ने प्रदेश की राजधानी शिमला ज़ोरदार प्रदर्शन किया। हज़ारों की संख्या में जुटे किसान और बागवान मांगों की तख्तियां और बैनर लेकर जलूस की शक्ल में पंचायत भवन से अम्बेडकर चौक पहुंचे और प्रदर्शन किया।
रैली को सम्बोधित करते हुए किसान नेता और शिमला से पूर्व विधायक राकेश सिंघा ने कहा कि सभी बेदखलियां नियमों की अवहेलना करके की जा रही है। उन्होंने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी बाबू राम बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य टाइटल वाली एसएलपी में भूमि से बेदखली को अवैध, बिना किसी स्पष्ट आदेश के किया गया तथा नेचुरल जस्टिस के सिद्धांतों का उल्लंघन माना है। सिंघा ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में डीएफओ कोर्ट द्वारा सार्वजनिक पब्लिक परमिसिस एक्ट के तहत हजारों बेदखली आदेश दिए गए तथा हिमाचल प्रदेश के डिविज़नल कमिश्नर और उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें बरकरार रखा गया। माानीय सर्वोच्च न्यायालय ने अब इन्हें रद्द कर दिया गया है या हिमाचल उच्च न्यायालय को वापस भेज दिया गया है।
परन्तु ये बेदखली अभी भी जारी है और राज्य के विभिन्न भागों में कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना तथा उचित सीमांकन किए बिना आवासीय मकानों को सील किया जा रहा है। यहां तक कि उन मकानों को भी नहीं बख्शा जा रहा है जो नौतोड़ पॉलिसी के तहत स्वीकृत भूमि पर बनाए गए हैं।
किसान सभा के राज्याध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तँवर ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में भूकंप, बादल फटना, अचानक बाढ़ आना, ग्लेशियरों का पिघलना और खिसकना, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं जिसके परिणामस्वरूप कृषि भूमि का नुकसान होता है। पिछले दो वर्षों में बहुत बड़े पैमाने पर ज़मीनों का नुकसान हुआ है और कुछ किसानों की सारी ज़मीन नष्ट हो चुकी है यहां तक कि घर बनाने के लिए भी ज़मीन नहीं बच पाई। ऐसे में बेदखली करना जीने के अधिकार का उल्लंघन है।
उन्होंने कहा कि सरकार जल विद्युत परियोजनाओं, राष्ट्रीय राजमार्गों, एक्सप्रेस-वे, हवाई अड्डों तथा अन्य विकासात्मक गतिविधियों के निर्माण के कारण भूमि अधिग्रहण में पुनर्वास एवं पुनसर््थापन में उचित मुआवज़ा तथा पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 के प्रावधानों को लागू किए बिना भूमि अधिग्रहण कर रही है जो किसी भी कीमत पर मंज़ूर नहीं है।
वहीं सेब उत्पादक संघ के सह संयोजक संजय चौहान ने कहा कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने वर्ष 2000 में भूमि राजस्व अधिनियम 1953 में धारा 163। को शामिल करके संशोधन किया था, जिसके तहत 1,67,339 किसानों ने शपथ पत्र भरकर अतिक्रमित सरकारी भूमि के नियमितीकरण के लिए आवेदन किया था और दावा किया था कि वे अतिक्रमित सरकारी भूमि के मालिक हैं। इस अधिनियम के खिलाफ एक रिट याचिका हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित है, जिस पर अभी अंतिम आदेश आना बाकी है, लेकिन इसके बावजूद भी ऐसे किसानों को पब्लिक परमिसिस एक्ट के तहत कब्ज़े वाली भूमि खाली करने के लिए नोटिस दिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 के प्रावधानों को विभिन्न सरकारी विभागों द्वारा लागू नहीं किया जा रहा है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री पहुंचे किसानों की रैली को सम्बोधित करने
किसानों का दबाव बढ़ा तो प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू राजस्व मंत्री जगत सिेह नेगी और शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर के साथ रैली स्थल पर पहुंचे और किसानों को सम्बोधित किया। मुख्यमंत्री ने किसानों को आश्वासन दिया कि प्रदेश में किसी की भी ज़मीन से बेदखली नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार ने राजस्व एवं बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की है जो ज़मीन से जुड़े तमाम पहलुओं पर तरतीब से कार्य करेगी तथा किसानों को बेदखल नहीं होने देगी। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायलय में चल रहे गोदाबर्मन मामले में प्रदेश सरकार भी पार्टी बनेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि ज्ञापन में दी गई मांगों को लेकर किसानों के साथ जल्दी ही बैठक की जाएगी और एक राय बनाकर केन्द्र सरकार के स्तर पर भी इन मुद्दों को उठाया जाएगा और प्रदेश के हित में कानूनों में संशोधन करने का आग्रह किया जाएगा।
किसानों बागवानों की ओर से रैली को किसान सभा के पूर्व महासचिव डॉ ओंकार शाद सहित जिलों से आये किसान नेताओं मंडी से कुशाल भारद्वाज, कुल्लू से नरायण चौहान, पूर्ण ठाकुर, रामपुर से देवकी नंद, कांगड़ा से सतपाल, सिरमौर से राजेंद्र ठाकुर ने सम्बोधित किया। 28 अप्रैल को उपमण्डल, खण्ड, तहसील स्तर पर किसान प्रदर्शन करेंगे।
मांगें
जब तक नीता राम बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में दिनांक 27.02.2025 को भारत का सर्वोच्च न्यायालय विशेष अनुमति याचिका (सिविल) डायरी संख्या (एस) 45933/2024 के तहत दिये गए आदेश के अनुसार एक बड़ी पीठ का गठन नहीं किया जाता है, जो हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय, शिमला द्वारा पारित अंतिम निर्णय और आदेश दिनांक 17.09.2024 में सिविल रिट याचिका संख्या 207/2018 के मामले में उत्पन्न हुई है, तब तक सभी प्रकार की बेदखलियों पर रोक लगाई जाए। आदेश का प्रासंगिक भाग पैरा 15 में बताया गया है।
‘‘हमें हैरानी हैं कि मूल बेदखली आदेश के साथ-साथ अपील सम्बन्धी आदेश में निहित त्रुटियों को उच्च न्यायालय द्वारा नज़अंदाज़ किया गया, जिसने बाबू राम की रिट याचिका को खारिज कर दिया। अपना पक्ष रखने का उचित और पर्याप्त अवसर नहीं दिए जाने के कारण, हमें इस बात में ज़रा भी संकोच नहीं है कि मेल बेदखली आदेश, अपील सम्बन्धी आदेश और रिट याचिका को खारिज करने के उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया जाए। अतः यह आदेश पारित किया जाता है।‘‘
न्यायालय ने अपने आदेश के समापन में कहा:
‘‘आज, इसी मुद्दे पर कई याचिकाएं लंबित हैं। चूंकि इसी विषय पर 28.11.2024 को अलग-अलग समन्वय पीठों द्वारा भिन्न-भिन्न मत रखे गए हैं, इसलिए हमारा मानना है कि इस मामले को भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाए, ताकि यदि आवष्यक हो तो इस विषय पर निर्णय लेने के लिए एक बड़ी पीठ गठित की जा सके।‘‘
‘‘अतः पक्षकारों को आदेश दिया जाता है कि अगले आदेश तक यथास्थिति बनाए रखें, जो वर्तमान में लागू है।‘‘
यह स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि 25 फरवरी 1952 की अधिसूचना, जिसमें सभी बंजर भूमि को वन के रूप में वर्गीकृत करना केवल एक अस्थायी प्रावधान था और इसके प्रभावों को समझे बिना इसे वन संरक्षण अधिनियम 1980 में शामिल किया गया था। इसके अलावा 1927 के वन अधिनियम या वन संरक्षण अधिनियम 1980 में ‘बंजर भूमि या परित्यक्त भूमि’ को स्पष्ट तौर पर परिभाषित नहीं किया गया है, इसलिए इसे भारत के संविधान के अधिकार क्षेत्र से बाहर घोषित किया जाए और जब तक ऐसा नहीं किया जाता है तब तक सभी बेदखलियों को स्थगित रखा जाए।
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में सिविल रिट पेटिशन (सीडब्ल्यूपी) पूनम गुप्ता बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य के मामले में दिसंबर 2024 में तपोवन में आयोजित हिमाचल प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में नियम 102 के तहत सरकारी संकल्प को अपनाने के संबंध में एक अतिरिक्त हलफनामा दाखिल किया जाए, ताकि सभी भूमिहीन और छोटे और सीमांत किसानों और उन लोगों को भी 10 बीघा तक भूमि प्रदान की जा सके जिनकी कृषि भूमि प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो गई है, इसके लिए केंद्र सरकार से 1980 के वन संरक्षण अधिनियम में उचित संशोधन करने का अनुरोध किया जाए।
भूमिहीन एवं गरीब किसानों को कम से कम 5 बीघा कृषि भूमि दी जाए और नियमित की जाए
वनाधिकार अधिनियम के तहत उपयुक्त अधिकारियों को अधिनियम के तहत किसानों द्वारा किए गए सभी दावों को स्वीकार करने का निर्देश दिया जाए और सरकार द्वारा मासिक आधार पर इसकी निगरानी की जाए।
सभी भूमिहीन व्यक्तियों को सरकार की नीति के अनुसार ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्रमशः दो और तीन बिस्वा भूमि प्रदान की जाए और जब तक उन्हें उपयुक्त भूमि आबंटित नहीं की जाती है, तब तक उनके आवास से बेदखल न किया जाए और 2023 की प्राकृतिक आपदा में जिनके घर नष्ट हो गए हैं, उन्हें 7 लाख रुपये प्रदान करने का विशेष पैकेज उन लोगों को भी दिया जाए जिन्होंने गैर-म्यूटेटेड नौतोड़ भूमि पर अपने घर बनाए हैं।
अधिग्रहित चौड़ाई के बाहर सड़क किनारे खाद्य पदार्थ, सब्ज़ी और फल या इसी किस्म के अस्थायी स्टॉल लगाए जाने वालों की सभी बेदखलियां रोकी जाएं और सरकार आने वाले बजट में एक नीति बनाए, जो आजीविका प्रदान करने के साधन के साथ-साथ राज्य के लिए राजस्व का स्रोत भी हो।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के अनुसार किसानों को उनकी अधिग्रहित भूमि का 4 गुणा मुआवज़ा दिया जाए। 2019 के बाद घटाए गए सर्कल रेट को खारिज करके अपडेट किया जाए।
भूमिहीन और छोटे और सीमांत किसानों को विभिन्न योजनाओं के तहत दी गई सभी नौतोड़ भूमि का विशेष म्यूटेशन किया जाए, जिसकी किसी न किसी कारण से म्यूटेशन नहीं हो सकी।
उन भूमि कब्ज़ाधारियों को मालिकाना हक सौंपा जाए जिन्हें ‘खुदरा-ओ-दरख्तान मलकियत सरकार’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जहां वन क्षेत्र 4 हैक्टेयर से कम है।
सिरमौर में शामलात भूमि नियमों में संशोधन करके जहां 5 बीघा से कम भूमि वाले किसानों को मौजूदा पटवार सर्कल के अनुसार उपलब्ध भूमि के आधार पर ज्यादा भमि दी जाए ताकि लोगों को सामाजिक न्याय मिल सके।
भू-स्वामियों की ऐसी भूमि जिस पर मुजारे लगे थे और जिसे भू-जोत अधिकतम सीमा अधिनियम, 1972 के अन्तर्गत सरकार में निहित किया गया है, जिसमें अब मुजारे सरकार के अन्तर्गत दर्ज हैं, उन्हें हिमाचल प्रदेश मुजारियत एवं भू-सुधार अधिनियम 1972 के अन्तर्गत मालिकाना हक दिये जाने के लिए उचित प्रावधान किए जाएं।
चकोतेदारों को मालिकाना हक देने के सभी लंबित मामलों का तुरन्त समाधान किया जाए।