रिपब्लिक भारत न्यूज़ 01-02-2025
सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने केंद्रीय बजट को पूर्णतः मजदूर, कर्मचारी, किसान व जनता विरोधी करार दिया है। यह बजट गरीब विरोधी है व केवल पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाला है। सीटू ने केंद्र सरकार को चेताया है कि केंद्र सरकार के मजदूर, कर्मचारी, किसान व जनता विरोधी बजट के खिलाफ 5 फरवरी को देशव्यापी प्रदर्शन होंगे।
केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ मार्च 2025 में शिमला में मजदूरों का राज्य स्तरीय विराट प्रदर्शन होगा। इसमें हिमाचल के औद्योगिक क्षेत्रों, आंगनबाड़ी, मिड डे मील, मनरेगा, निर्माण, क्षेत्र, जलविद्युत परियोजनाओं, एसजेवीएनएल, एनएचपीसी, रेलवे निर्माण, फोरलेन, नगर निगम शिमला की सैहब सोसाइटी, आईजीएमसी, टांडा मेडिकल कॉलेज, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट, नगर परिषद आदि सार्वजनिक सेवाओं, आउटसोर्स कर्मी, रेहड़ी फड़ी तयबजारी, होटल, गाइड व अन्य व्यवसायों के मजदूर व कर्मचारी शामिल होंगे।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह पूँजीपतियों के साथ खड़ी हो गयी है व आर्थिक संसाधनों को आम जनता से छीनकर अमीरों के हवाले करने के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। पूंजीपतियों का मुनाफा पिछले पंद्रह वर्षों के उच्चतम स्तर तक पहुंच चुका है जबकि मजदूरों का वेतन कोविड काल से पहले की स्थिति से भी कमतर हो गया है।
मोदी सरकार अभी तक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में कई लाख करोड़ रुपये से अधिक का विनिवेश कर चुकी है तथा बेहद संवेदनशील रणनीतिक रक्षा क्षेत्र को भी इसके दायरे में लाकर यह सरकार पूंजीपतियों के आगे घुटने टेक चुकी है तथा देश के संसाधनों का दुरुपयोग कर रही है। बजट में बैंक, बीमा, रेलवे, एयरपोर्टों, बंदरगाहों, ट्रांसपोर्ट, गैस पाइप लाइन, बिजली, सरकारी कम्पनियों के गोदाम व खाली जमीन, सड़कों, स्टेडियम सहित ज़्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करके बेचने का रास्ता खोल दिया गया है। बीमा क्षेत्र में सौ प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश इसका उदाहरण है।
ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस के नारे की आड़ में मजदूर विरोधी लेबर कोडों व बारह घण्टे की डयूटी को अमलीजामा पहनाकर यह बजट इंडिया ऑन सेल का बजट है। इस से केवल पूंजीपतियों,उद्योगपतियों व कॉरपोरेट घरानों को फायदा होने वाला है व गरीब और ज़्यादा गरीब होगा।
खुद को गरीबों की सरकार कहने वाली मोदी सरकार गरीबों को खत्म करने पर आमदा है। मजदूरों के 26 हज़ार रुपये न्यूनतम वेतन की मांग ज्यों की त्यों खड़ी है। सरकार का दावा है कि आम भारतीय की आय पचास प्रतिशत से अधिक बढ़ी है जबकि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन आईएलओ के आंकड़ों में स्पष्ट है कि भारत के करोड़ों मजदूरों का वास्तविक वेतन महंगाई व अन्य खर्चों के मध्यनज़र घटा है। यह सरकार जनता को मूर्ख बनाने का कार्य कर रही है।
महिला सशक्तिकरण व नारी उत्थान के नारे देने वाली केंद्र सरकार ने गरीबों व महिलाओं को इस बजट में आर्थिक तौर पर कमज़ोर किया है। देश का सबसे गरीब तबका व सबसे ज़्यादा महिलाएं सामाजिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली मनरेगा व स्कीम वर्करज़ जैसी कल्याणकारी योजनाओं में कार्य करते हैं। इन क्षेत्रों के बजट में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है।
महत्वपूर्ण खनिजों की खदानों के निजीकरण का रास्ता खोल दिया गया है। परमाणु ऊर्जा के निजीकरण पर मोहर लग चुकी है। खजाना खाली होने का रोना रोने वाली केन्द्र सरकार ने पूंजीपतियों से लाखों करोड़ रुपये के बकाया टैक्स को वसूलने पर एक शब्द तक नहीं बोला है।
सरकार ने पिछले पांच वर्षों में योजना कर्मियों के बजट में लगातार कटौती की है जबकि दूसरी ओर पूंजीपतियों के टैक्स लगातार घटाकर उन्हें भारी राहत दी गयी है। टैक्स चोरी करने वाले पूंजीपतियों को सरकार ने पिछले पांच वर्षों में लगातार संरक्षण दिया है जोकि बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। आंगनबाड़ी, आशा व मिड डे मील कर्मियों से 11 साल पहले यूपीए सरकार के 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन में उनके नियमितीकरण के वायदे को मोदी सरकार ने पिछले दस साल में रद्दी की टोकरी में डाल दिया है जोकि देश में सरकारी क्षेत्र में सेवाएं देने वाली सबसे गरीब 65 लाख महिलाओं से क्रूर मज़ाक है।